अत्यंत द्रुत गति से बदलते हुए इस समाज मे , इस परिवेश मे
संवेदनाओं और भावनाओं का ह्रास होता स्पष्ट नज़र आ रहा है। ऐसे दुष्कालग्रस्त मानव
समाज मे, सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों की पुनः स्थापना का ही एक प्रयास है , हम सभी
का अपना... यह आत्मीय विद्या मंदिर !
जी हाँ ,
मित्रों ! आत्मीय सम्राट , परम् पूज्य श्री हरिप्रसाद स्वामी जी द्वारा सन् 2004
में स्थापित, आत्मीय विद्या मंदिर जो कि ,
पिछले दस वर्षों से निरंतर शिक्षा के क्षेत्र में , ज्ञान के साथ-साथ यहाँ के छात्रों
में नैतिकता एवं शुद्ध मानसिकता के बीजों का रोपण कर रहा है। इस बार भी अपनी इसी
अनोखी एवं अद्भूत परंपरा की श्रंखला में एक और कड़ी को शिक्षा-सत्र 2013 – 2014 के
लिए जोड़ चुका है।
विद्यालय
के सत्यम् हाउस ने आठ जुलाई से प्रारंभ हुए सप्ताह को , विद्यार्थी के जीवन में
अत्यंत महत्वपूर्ण “विनय” नामक मूल्य का वर्णन करते हुए संपन्न किया। सप्ताह भर
विद्यालय की प्रार्थना सभा में विस्तार पूर्वक ‘विनय’ का महत्व समझाया गया।
विद्यालय के व्यवस्था-तंत्र के अनुसार , सत्यम् हाउस को ‘विनय’ नामक मूल्य पर
आधारित एक लघु नाटिका “विद्या विनयेन शोभते”
प्रस्तुत करने का मौका मिला। सत्यम् हाउस के सभी सदस्यों ने आत्मीयता से विचारों
का आदान-प्रदान कर के विद्यालय के नृत्य-निर्देशक श्रीमान मृणाल नायक के
मार्गदर्शन अनुसार इस नाटक को प्रस्तुत करने का नम्र प्रयास किया।
“प्रिय
राम ! जीवन पथ हर मानव को अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, इन कठिन
परिस्थितियों को केवल बल और बुद्धि के आधार पर जीत लेना असंभव है। संपूर्ण विजय
प्राप्त करने के लिए बल और बुद्धि के साथ विनय का होना परमावश्यक है”।
विश्वामित्र जी के द्वारा प्रभु श्री राम को शिव-धनुष
उठाने से पूर्व दिये गये उपर लिखित ये आशिर्वचन ही वास्तव में निचोड़ थे, पूरे
नाटक के।
मानवता का सर्वोत्तम आभूषण विनयशीलता को कहा गया
है। पुरुषोत्तम राम विनयशीलता के साक्षात् अवतार थें। उसी विनयशीलता के शस्त्र से
क्रोधित और आगबबुला हुए श्री परशुराम के क्रोध को भगवान श्री राम नियंत्रित कर
पाए।
विनम्र व्यक्ति में सभी प्रकार की परिस्थितियों
को झेलने की शक्ति होती है , ऐसी शक्ति और अपने ज्ञान- गरिमा का रंज मात्र भी उन्हें
दंभ नहीं होता है और वे सदैव दूसरों के समक्ष झूकना , नम्र होना ही अपना कर्तव्य
मानते हैं। वास्तव में विनय कठिनाईयों का सामना करने में संबल बनता है और
प्रतिद्वन्द्वी को बल क्षीण करता है।
आइए !
श्री राम में बसे इस अद्भूत विनम्रता के महान सदगुण को हम हमारे जीवन में ढालने का
प्रयास कर जीवन को समृद्ध बनाएं ।।
लेखक: श्री पुष्पक जोशी
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