Saturday, September 28, 2013

जल-झुलनी एकादशी 2013

तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन पाँच प्रमुख अंगो से बने हिंदू पंचांग के अनुसार नवसंवतसर (नववर्ष) का शुभारंभ चित्रा नक्षत्र से युक्त चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) की प्रतिपदा (एकम्) को मनाया जाता है। तत्पश्चात् द्वितीय माह ‘वैशाख’ और तृतीय माह ‘ज्येष्ठ’ को छोड़ कर के चतुर्थ मास ‘आषाढ़’ के शुक्ल पक्ष की एकादशी; ‘देवशयनी-एकादशी’ से प्रारंभ होकर कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ पर्यंत, समय के इस प्रवाह को – चतुर्मास कहते हैं । 


 
धरातल पर ‘जेठ’ महीने की भीषण और प्रचण्ड धूप के बाद, आषाढ़ माह के शुरू होते ही काले बदरवा की गर्जन और दामिनी की आतिशबाजी से गगन थर्रा उठता है तथा मेघ समारोह के नजारे दृष्टिगोचर होने लगते हैं। पावस की बूंदें धरती पर पड़ते ही लोगों के तन-मन फुहारों से सिंचित हो खिल उठते हैं, ताप भाग खड़ा होता है। झुलसे उपवन में बहार आ जाती है। घनघोर घटाओं से अंबर घिर जाता है। चहुंओर हरीतिमा ही हरीतिमा। नदी, तालाब, सरोवर आदि लबालब हो जाते हैं, कृषक प्रफुल्लित हो उठते हैं, ठंडी बयारें, वर्षा का जल नया संदेशा, नई चेतना लेकर आता है। धरती की गोद से जब नव अंकुर फूटते हैं तो भूलोक पर कोपलों की हरियाली से चूनर लहरा उठती है।

और फिर प्रारंभ हो जाता है दौर त्योहारों का। हरियाली का उत्सव हरियाली अमावस्या से लगाकर नाग पंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्री, दशहरा, दीपावली आदि–अदि... क्या ये सभी उत्सव पृथ्वी को हरा-भरा रखने और सरिसृप(सांप) सहित संपूर्ण प्राणी जगत की सुरक्षा का संदेश देते हुए हमें ये नहीं बताते हैं कि वनस्पति और प्राणी जगत एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं ?

त्यौहारों की शृंखला के में एक और कड़ी जुड़ जाती है जो जल-झुलनी एकादशी के रूप में ख्याति प्राप्त है। यह अद्भुत और विशेष त्योहार आर्यावर्त (भारत) में कई नामों से जाना जाता है जैसे- परिवर्तिनी एकादशी, पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, डोल ग्यारस आदि ।

वर्षा काल के दौरान चिरकाल तक भ्रमण के अवसर की सुलभता न होने के कारण अल्प-विहार का संदेश देता यह खास पर्व आत्मीय विद्या मंदिर में भी प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी मनाया गया। चिरप्रतिक्षित जल-झुलनी एकादशी का उत्साह विद्यालय में पौ फटने के साथ ही नज़र आने लगा। सूर्योदय के साथ ही नन्हें-नन्हें बालको का भगवान सहजानंद के प्रति धर्मानुराग आज विशेष रूप में देखा गया। प्रभात वेला की ईशवंदना के बाद क्या किशोर और क्या वयस्क, आबालवृद्ध समूह प्रातःकालिन अल्पाहार में केवल राजगिरा और मालकांगनी के पकोड़े खाकर दैनिक कार्यों में प्रवृत्त हुआ। विद्यालय में रविवार का अवकाश होने के कारण विद्यार्थीयों इस उत्सव को लेकर खासा उत्साह देखने मिला। छात्रों ने भी मध्याह्न के भोजन में भी छाछ भाजी और फलाहारी पूरियों का सेवन किया। इस प्रकार आराधनपूर्ण इस दिवस की कब सांझ हो गई, ज्ञात ही नहीं हो पाया।

और अब ! आखिर आ ही गया समय का वो प्रतिक्षारत खंड, जिसका पिछले सप्ताहभर से भक्तों को बेसब्री से इंतज़ार था। करीब चार बजे पूरे उत्साह और उमंग के साथ औत्सुक्यपूर्ण वातावरण में भगवान स्वामिनारायण और उनके साथ शास्त्रीजी महाराज, योगीजी महाराज और प्रगटगुरूहरि हरिप्रसाद स्वामी महाराज की प्रतिमाओं को देवालय से आदरपुर्वक बाहर लाकर श्रद्धा एवं सावधानी के साथ पालकी में बैठाई गई। भगवान की जय-जयकार से विद्यालय प्रांगण गूंजायमान हो उठा। इस शोभायात्रा की शोभा तो बस देखते ही बनती थी। छात्रों एक जत्था पूर्ण जोर-शोर से जोश के साथ वाद्ययंत्रों का वादन कर रहा था तो दूसरी ओर अन्य छात्र भजनों के गायन से माहौल को भक्ति से ओत-प्रोत कर रहे थें।

और इस तरह से यह यात्रा विद्यालय के तरणताल तक जा पहुँची जहाँ पर सर्वप्रथम भगवान का शुद्ध जल से अभिषेक किया गया तत्पश्चात् विद्यालय परिवार के पूज्य बालुकाका, पूज्य वल्लभमामा एवं प्रधानाचार्य डा. विजय पटेल ने पूजन और आरती की। शाम का वातावरण अत्यंत सुहावना था। विद्यालय के सभी छात्र शिक्षक एवं अन्य कर्मचारीगण को संबोधित करते हुए डा.पटेल ने इस पर्व के महात्म्य पर प्रकाश डाला और कहा कि ‘जिस प्रकार किसी नदी या सागर को सुगमता व सरलता पूर्वक पार करने में एक तरणी(नौका) कितनी सहायक होती है, ठिक वैसे ही ये जीवन भी एक सागर जैसा है जिसमे विषमता की समय-समय पर अनेक लहरे आती रहती है जिनका सामना कर सफलतापूर्वक इस भवसागर को पार करने में संत हमारे लिए नाव की भांति सहायता करते हैं और हम जीवन का सुगमता और सरलता से निरवहन कर सकते हैं’। प्रधानाचार्यजी के इस उद्बोधन ने गागर में सागर भरने का काम किया।

फिर कनिष्ठ छात्रों से लगा कर वरिष्ठ छात्रों तक सभी ने भक्ति के साथ अत्यधिक उमंग द्वारा बारी-बारी से श्री हरि को जल में विहार करवाया। कार्यक्रम के अंत में ऋतुफल खीरा(ककड़ी) का प्रसाद वितरण किया गया तथा इस तरह से जल-झुलनी एकादशी के इस उत्सव को आत्मीय विद्या मंदिर में सरसता के साथ मनाया गया। खुब भक्तिपरक और प्रचुर रोचक ऐसे अग्रीम जल-झुलनी एकादशी के उत्सव की प्रतिक्षा मे...

लेखक: पुष्पक सर

Thursday, September 26, 2013

Inter House Skating Competition 2013-14

Stronger foundations are the reason for the stability and strength of a tall building. Likewise in sports, stronger domestic competitions often lead to a strong showing outside of the school.

Skating has always been one of the favorite sports at AVM. Skating can often give you the thrill of speed but also make you realize the importance of balance in our lives. Therefore it was not a surprise that students were very excited to participate in the inter house skating competition. As per the school policy of ‘safety first’, all the students were ready with their protective gears for this very exciting competition.

This year, for the very first time the Beginners group was included through which as young as the students of class 3 participated in the competition. There were also separate groups for Sub Juniors, Juniors and Seniors. Students participated for long as well as short distance races.

Not for the first time this year, the students of Satyam house showed their superiority on the field and swept the competition with a record margin with Sundaram house a distant second.

 
Here are the results of the competition.


The inter house competition showcased the talent of students along with their will to maintain very high standards. Such a level of skill and commitment, was later rewarded with some excellent performances at the district level. AVM swept the U-14 competition at the district level and three of them were selected to represent the district at the state level later this year.

Below are the students who have made the school proud.
Durgesh Gami (9B) – First
  
Vishrut Patel (9A) – Second
 
Hrushi Patel (9A) – Third 
On behalf of AVM family we would like to congratulate the three of them on this achievement.