Thursday, July 8, 2010

मान - सम्मान - आदर

प्रभु के चक्षु से बहता पानी


आज प्रभु के चक्षु से बह रहा था पानी।

जैसे, बह रहा हो झरना, सुना रहा हो कहानी।।

प्रभु की सर्जित दुनिया में –

आज मनुष्य द्वारा मनुष्य की हो रही थी निलामी।

जैसे आग का दरिया और समुद्र का खारा पानी।।

आज प्रभु के चक्षु से...



प्रेम से सँवारकर प्रभु ने मनुष्य की मूरत बनाई।

मूल्यों से सजाकर उसने हम से लीला करवाई।।

खुश हुआ प्रभु , हाँ...... खुश हुआ प्रभु ।

जब मनुष्य ने आत्मीयता की अलख जगाई।।



अरे! आज क्या हुआ मनुज को -

अरे! आज क्या हुआ मनुज को –

जो उसने अपनों की ही खिल्ली उड़ाई।।

आज प्रभु के चक्षु से...



मनुष्य ही मनुष्य का कर रहा था अनादर।

नफ़रत की सभी ने ओढ़ ली थी चादर।।



जिस धर्म ने सभी को जुड़ना सिखाया।

उसी धर्म के वास्ते, हाँ, आज उसी धर्म के वास्ते,

सभी मनुष्यों ने एक-दूजे का खून बहाया।

अतः प्रभु ने सभी को अपने आँसू से नहलाया।।



इसलिए...

आज प्रभु के चक्षु से बह रहा था पानी।

जैसे, बह रहा हो झरना, सुना रहा हो कहानी।।



- निहारिका

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